फीडे कैंडीडेट - 1950 से 2020 तक का सफर
विश्व शतरंज चैम्पियन चुनने की प्रक्रिया में एक बार फिर फीडे कैंडीडेट्स टूर्नामेंट का महत्व सबसे ज्यादा बढ़ चुका है और इसी कैंडीडेट्स तक पहुँचने के लिए विश्व शतरंज के महारथी फीडे विश्व कप ,फीडे ग्रां प्री , फीडे ग्रांड स्विस जैसे बड़े मुकाबलों के जरिये इसमें जगह बनाते है ,पर क्या आप जानते है इसकी शुरुआत कब से हुई । 1950 में सबसे पहले फीडे कैंडीडेट्स के पहले विजेता बने थे डेविड ब्रोंस्टाइन और इसके बाद 1985 तक यह सिलसिला चला और फिर वापस इसका आयोजन 28 वर्ष बाद 2013 में शुरू हुआ । भारत के लिए विश्वनाथन आनंद ही एकमात्र ऐसे खिलाड़ी रहे जो इसका ना सिर्फ हिस्सा रह चुके है बल्कि इसे जीत भी चुके है । कल से शुरू हो रही फीडे कैंडीडेट्स 2020 के पहले आइये इसके इतिहास पर एक नजर डालते है ।
एकातेरिनबुर्ग ,रूस में सभी बाधाओ को पार करते हुए 16 मार्च से फीडे कैंडीडेट शतरंज के मुक़ाबले शुरू हो जाएंगे । शतरंज में कैंडीडेट मुक़ाबले 1950 से शुरू हुए । इससे पहले विश्व विजेता खिलाड़ी अपना प्रतिद्वंदी खुद चुन सकता था पर फिर कैंडीडेट टूर्नामेंट का विजेता मौजूदा विश्व चैम्पियन को चुनौती देगा ऐसा नियम विश्व शतरंज संघ द्वारा बनाया गया । कैंडीडेट में खिलाड़ियों की संख्या अब तो 8 तय कर दी गयी है जो विभिन्न माध्यम से चुनकर आते है पर पूर्व में खिलाड़ियों की संख्या 10 से 15 तक भी रही है दरअसल बुडापेस्ट 1950 में 10 ,ज्यूरीच 1953 में 15 खिलाड़ी तो अमेस्टर्डम 1956 में 10 खिलाड़ी कैंडीडेट में खेले पर उसके बाद युगोस्लाविया 1959 से खिलाड़ियों की संख्या 8 तय कर दी गयी । 1985 में मोंटेपेजियार में कैंडीडेट के बाद विश्व चैंपियनशिप के विवाद और विश्व चैंपियनशिप के फॉर्मेट के बदलने के बाद 2013 में इसे पुनः शुरू किया गया ।
भारत से इतिहास में सिर्फ 5 बार के विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद ही अकेले खिलाड़ी रहे जो इसका हिस्सा रहे और 2014 में उन्होने इसे जीतकर कार्लसन के साथ विश्व चैंपियनशिप भी खेली । फोटो - अमृता मोकल
आइये अब तक कौन कौन इसका विजेता बना नजर डालते है । 1950 में बुडापेस्ट हंगरी में हुई पहली फीडे कैंडीडेट टूर्नामेंट को सोवियत यूनियन के डेविड इओनोविच ब्रोंस्टाइन नें जीता ,हालांकि ब्रोंस्टाइन दुर्भाग्यशाली रहे की बोथविनिक के खिलाफ विश्व चैंपियनशिप ड्रॉ हो जाने की वजह से बोथविनिक पुनः खिताब हासिल करने मे कामयाब रहे और एक महान खिलाड़ी विश्व चैम्पियन बनने से चूक गया
डेविड ब्रोंस्टाइन | Photo: Eric Koch
उसके बाद 1953 में ज्यूरीच तो 1956 में एम्स्टर्डम में हुई सोवियत यूनियन के वेसली सिमिस्लोव विजेता बने साथ ही दो बार कैंडीडेट जीतने वाले वह अब भी अकेले खिलाड़ी है । साथ ही वह पहले कैंडीडेट बने जो विश्व चैम्पियन भी बने उन्होने मिखाइल बोथविनिक को हराकर विश्व चैम्पियन का ताज हासिल किया
युगोस्लाविया में 1959 में लातविया के मिखाइल ताल नें यह खिताब हासिल किया और वह भी बाद मे विश्व चैम्पियन बने
1962 में कुरकाओ में अर्मेनिया के तिगरान पेट्रोसियन नें खिताब हासिल किया । 20 वीं शताब्दी मे वह कैंडीडेट जीतने के बाद विश्व चैम्पियन बनने वाले आखिरी खिलाड़ी रहे। 1985 में मोंटपेजियर फ्रांस में कैंडीडेट का खिताब सयुंक्त रूप से रूस के आर्तुर युशुपोव ,इयान सोकोलोव और अर्मेनिया के राफेल वाघेनियन नें जीता ।
इसके बाद फीडे कैंडीडेट का उसका अगला विजेता 2013 में लंदन में नॉर्वे के मेगनस कार्लसन के तौर पर मिला और उन्होने भारत के विश्वनाथन आनंद को पराजित कर विश्व खिताब जीत लिया । अगले ही साल में विश्वनाथन आनंद नें 2014 कांति मनसीस्क में कैंडीडेट जीतकर कार्लसन को चुनौती दी पर वह कार्लसन फिर जीत गए । मॉस्को 2016 में रूस के सेरगी कार्याकिन तो बर्लिन 2018 में अमेरिका के फबियानों करूआना नें कैंडीडेट जीतकर कार्लसन को चुनौती दी पर वह भी असफल रहे और अब देखना है इस बार कौन कार्लसन के ताज को चुनौती देगा ।
इस बार कैंडीडेट में अमेरिका के फबियानों करूआना ,नीदरलैंड के अनीश गिरि ,फ्रांस के मेक्सिम लाग्रेव ,रूस के इयान नेपोंनियची ,अलेक्ज़ेंडर ग्रीसचुक और अलीक्सींकों किरिल , चीन के डिंग लीरेन और हाउ वांग खेल रहे है ।